क्या प्राइवेट अस्पतालों की मनमानी पर सरकार को लगाम कसनी चाहिए

आपने अक्सर देखा होगा कि प्राइवेट अस्पतालों की बेड का जो चार्ज होता है ,वह 3 सितारा और 5 सितारा होटल के कमरे के मुकाबले से लगभग ज्यादा ही होता है और भारत देश में मध्यम वर्ग के लोग 3 सितारा और 5 सितारा होटल तो क्या कभी अच्छे रेस्टोरेंट में जाने से पहले भी कई बार सोचते हैं।
इतना ही नहीं कई अस्पतालों की तो नियम यह भी होते हैं कि, वह बाहर से कराए गए टेस्ट और बाहर से लाई गई दवाइयों को भी अपने अस्पताल में लाने की अनुमति नहीं देते हैं और ना ही बाहर के लैब से कराए गए टेस्टिंग को वह सही मानते हैं, और कुछ समान जो कि हॉस्पिटल के अंदर खुद बेचते हैं वह बाजार के दामों से 3 गुना से 4 गुना ज्यादा दाम पर बेचते हैं।
(यह हम नहीं कहते यह आम जनमानस का अपना-अपना अनुभव कहता है) भारत में सरकारी अस्पतालों से ज्यादा प्राइवेट संस्थानों की संख्या है और कहीं ना कहीं सुविधा सरकारी अस्पतालों की तुलना में प्राइवेट अस्पतालों की सुविधा अच्छी होती है लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि प्राइवेट अस्पताल अपने मुनाफे के चक्कर में मध्यम वर्गीय परिवार और गरीब परिवार की जेब पर अस्तुरा चलाएं। हर वर्ष पता नहीं कितने लोग अपने बीमारी के कारण जिसका इलाज काफी महंगा होता है, जो कि उस व्यक्ति के बजट से बहुत दूर होता है जिसके कारण वह आत्महत्या करने पर मजबूर हो जाते हैं।
इन सब को रोकने के लिए सरकार को या तो सरकारी अस्पताल की संख्या बढ़ानी चाहिए और उनके अंदर सुविधाओं को बढ़ाना चाहिए और अगर यह सब तुरंत में संभव नहीं तो प्राइवेट अस्पतालों के ऊपर एक लगाम कसनी चाहिए ताकि वह अपनी मनमानी दामों में इलाज ना कर सके एक रेट दर तय होना चाहिए जिस रेट दर में रहकर प्राइवेट अस्पतालों को इलाज करना पढ़े।


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