सरकारी अस्पताल मे अस्पताल प्रबंधन की गैर जिम्मेदाराना हरकत और मरीज के परिजनों का गुस्सा, दोनों पर विश्लेषण
पूरे भारतवर्ष में हजारों सरकारी अस्पताल सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र उपलब्ध है ,जिस मे नि:शुल्क मरीज का इलाज किया जाता है लेकिन अक्सर ऐसा देखा जाता है कि अगर इलाज के दौरान किसी मरीज की मृत्यु हो जाती है या फिर मरीज की स्थिति में कोई सुधार नहीं आता है और उसकी हालत गंभीर हो जाती है तो परिजन तिलमिला उठते हैं और अपने गुस्से के अस्पताल प्रबंधन और ड्यूटी में तैनात डाक्टर और नर्स पर उतार देते हैं ।
हालांकि यह बात भी उतना ही कटुसत्य है कि सरकारी अस्पताल में मरीजों की संख्या इतनी ज्यादा होती है कि जितने ना तो अस्पताल में बेड उपलब्ध होते हैं, ना नियमित रूप से उनके लिए दवाइयां उपलब्ध होती है और ना ही डॉक्टर और अन्य मेडिकल स्टाफ की संख्या उतनी होती है ,जो की प्रत्येक मरीज को बेहतर इलाज दे सके।
लेकिन इन सारी बातों पर मरीज और उनके परिजनों की नजर नहीं जाती है, जिसके कारण अक्सर अखबारों और टेलीविजन न्यूज चैनल के माध्यम से आप लोगों ने देखा और पड़ा होगा कि किसी मरीज की अगर इलाज के दौरान मृत्यु हो जाती है तो अस्पताल में तोड़फोड़ और डॉक्टर के साथ हाथापाही तक हो जाता है। इस तरह की घटनाओं पर रोक लगाने के लिए जरूरत है कि पूरे देश भर में अधिक से अधिक सरकारी अस्पताल बने और उन सभी अस्पतालों में नियमित रूप से बेड, दवाइयां ,डॉक्टर और अन्य मेडिकल स्टाफ उपलब्ध हो, उसके बाद ही इस तरह के घटनाओं पर अंकुश लगाया जा सकेगा और प्रतिदिन इलाज में जो लापरवाही सामने आती है उन सब पर रोकथाम लगाया जा सकेगा।